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विवेकानंद

ना यौवन का शृंगार चुनो

तुम समय की ललकार सुनो

तुम हो प्रहर, पथ पर निडर

बढ़ो नवीन निर्माण करो

असत्य ना प्रशस्त करो,

तुम सत्य संग विजयी बनो

धर्म, धरा, सन्मार्ग चुनो

अधर्म मिटा सशक्त बनो

हो क़दम अड़े हिमालय से

मन का अतल विस्तार करो

विश्व पटल को ढक सको

इतना दिव्य आकर करो

तू सहर, शाम, आठों पहर

पाषाण पूर्ण पथ पर चलकर

बढ़ चंद-चंद या मन्द-मन्द

कर अंग-अंग विवेकानंद।