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सिपाही की प्रेम कहानी
एक सिपाही अपने गाँव में लंबे समय से प्रतीक्षित वापसी करता है। उसकी नज़र गांव की एक युवती पर पड़ती है, जिसकी सुंदरता और शालीनता उसका मन मोह लेती है। घबराहट पर दृढ़ संकल्प के साथ, वह अंततः उसके सामने अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का साहस करता है…
“ऐ प्रिय सुन लो जरा
कुछ कह रहा दिल मेरा
क्यों साँसें छेड़ चली जाती हो
क्यों नज़रें फेर चली जाती हो
फिर कभी मुस्कुरा कर ज़ख्म देती हो
कभी मुस्कुरा मरहम चपेत चली जाती हो
अब दिल दिया है तो कुछ कह नहीं पाता
तेरा जिक्र लिखे बिना रह नहीं पाता
क्यों नहीं पूछती
कि क्या लिखते हो
मेरी नज़र, मेरी अदा, मेरी वफ़ा
इन सब को क्या कहते हो
तुम पूछोगी भी कैसे
बस सांवले बदन पर मरती हो
मेरी आँखों से देखो न
क्यों आईना देखा करती हो
बताओ कभी दिल नहीं करता
कि दिल देकर देखूँ
नज़र फेरने के बजाय
मुझमे खोकर देखूँ
कभी बस बकबक छोड़
मेरी धड़कने सुनूँ”
बात खत्म होती है और एक अनंत सा सन्नाटा पसर आता है। कुछ समय निकलता है और एक दबी सहमी आवाज़ उभर आती है…
“इतनी नादान नहीं हूँ मैं
इतनी भी नादान नहीं हूँ मैं
क्यों टटोल जज़्बातों को
मतलब निकाल लेते हो
पूछना कुछ नहीं होता
नज़रे पढ़ा करते हो
कैसे पता प्यार हैं या नहीं
जो चुप रहूँ तो बेवफा कहते हो”
कुछ समय बाद सीमा पर दुश्मनों की सुगबुगाहट बढ़ने लगती है। समय से पहले हि उसे वापिस बुला लिया जाता है। जंग की तैयारी पुरजोर तरीके से चल रही होती है। एक भयपूर्ण सन्नाटा आता मालूम होता हैं। इस दौरान सैनिक एक ख़त अपनी प्रेमिका के नाम लिखता है…
“ऐ प्रिय सुनो ना
आज दिल बहुत जोरों से धड़क रहा
कुछ चाह है कहने की, बहुत चिल्ला रहा
शायद डर है इसे
इस बात का नहीं कि जंग के बाद मेरा क्या होगा
बल्कि इस बात का कि हमारा क्या होगा
क्या होगा चंद शब्दों में किये उन बड़े वादों का
क्या होगा उन छोटी-छोटी नटखट यादों का
वक्त जो हमने साथ गुज़ारा शायद बहुत कम था
क्या होगा अगर ना गुज़ार पाये दोबारा
ये तो तुम जानती हो प्रिय कि मैं तुमसे प्रेम बहुत करता हूँ
पर जितना इस देश से करता हूँ उससे थोड़ा कम करता हूँ
युद्ध भीषण हैं कि तूझे सोच ख़ुद को कमजोर नहीं बनाउँगा
लौटा नहीं तो तुम बेवफा कह देना
पर इस बार इस मिट्टी का क़र्ज़ जरूर चुकाउँगा
वेदना हृदय की दबाए मैं साहस में उसे बदल रहा
तुम भी थोड़े आँसूं पी लेना, कुछ को क्रोध बना लेना
कुछ से मस्तक मेरा भिगो देना
कि यह जंग बहुत भीषण है
पता नहीं लौट भी पाउँगा या नहीं
मुझे अपने हृदय में जगह देना
उस वक्त मैं तुम्हें छोड़ आया था
इस बार प्रिय हृदय से कहीं जाने न देना”
जंग शुरू होती है, कई दिनों तक चलती है। दोनों ओर से कई सैनिक लड़ते-लड़ते जान गँवा देते है। ले जाते हैं अपने साथ कई कहानियाँ, कुछ पूरी, कुछ अधूरी। एक अधूरी कहानी उस रोज़ उस गाँव में भी छूट जाती हैं। खबर पहुँचती है, शरीर पहुँचता है और उससे पहले पहुँच जाता है दुःख, चोट, दर्द। वो लड़की भीड़ में से अपने प्रेमी को निहारती हैं, इतना हक़ नही लगता उसे कि बांकियो से ज्यादा हक जमा पाय। उनके सामने उसे सीने से लगा पाये। वो घुटती हैं, बहुत घुटती हैं, कहती हैं…
“ऐ वक़्त ज़रा थम जा
अभी कुछ खतों के जवाब लिखने बाक़ी है
पता नहीं वो कहाँ पहुँचा है, पता दे मुझे
कि आखिरी ख़त भेजना बाक़ी हैं।
कैसे कहूँ कब तक आंखों को रोक पाऊंगी
ये उसकी राह ताकते मुस्कुराए बैठे हैं
हाँ माना थोड़ी-सी ही पर उन यादों का ज़िक्र कर रहे हैं
मालूम न था ऐसे उलझोगे सरहद की कशमकश से
कई जवाब मेरे अधूरे हैं जिन्हें देना था फुर्सत से
कई ख्व़ाब, कई वादे मेरे दिल के अंदर दबे-दबे से हैं
ऐ वक्त जरा थम जा
उन ख़्वाबों का हिसाब अभी दिल करने को हैं।
क्यों चले गये छोड़कर एक ज़रा इख्तला भी नहीं की
माना मैं गैर थी पर अपनों की भी परवाह नहीं की
हाँ मालूम है सर तेरे क़र्ज़ चुकाने का जुनून था
पर तेरे रगों में इस माँ का भी खून था
देख ज़रा बहना को अपने, राखी बनायें रखी थी
क्या बोलकर समझाएँ कि भैया तेरा रूठ गया।
बह रही आँखें यहाँ वहाँ जश्न जीत का है
सनम मेरा शहीद हो गया वहाँ सितम होली का है
अब उठ भी जाओ
कि मेरी मांग का सिंदूर ये हाथ भरने को है
ऐ वक़्त ज़रा थम जा
की कुछ ख़त के जवाब लिखने को है।
ऐ आसमान, ऐ घटा तू तो आजाद है
तू ना किसी सरहद, ना मज़हब का औलाद है
कभी बरस इतनी ज़ोर से कि ये लकीरें मिट जाए
क्या दर्द नहीं दिखता तुझे
बरस की ये दर्द धुल जाए
ऐ वक्त जरा थम जा
कि अभी शहादत का हिसाब लेना बाक़ी है
उन अधूरे खातों का जवाब देना बाक़ी है।”

