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मोहब्बत का सफ़र

तो मोहब्बत का सफ़र है, शुरुआत कैसे हुई इस सफ़र की। मेरा मानना हैं कि कोई इंसान कभी ख़ुद में पूरा नहीं हो सकता, पूरा होने के लिए अधूरा होना ज़रूरी है और कभी न कभी ऐसा मंज़र ज़रूर आता है जब किसी के होने से वो ख़ुद के पूरे होने का एहसास मिलता है। वो मोहब्बत का एहसास मिलता है और इसमें कोई जबरदस्ती नहीं होती, किसी की गलती नही होती, जो वज़ह होती, बस धड़कनो में होती और शुरू हो जाता सफ़र मोहब्बत का। कहते हैं कि …

“ यूँही नहीं शराब ख़राब कहलाई

उसने बोतल लबों से लगाई तो थी

और दोष मोहब्बत का सिर्फ़ मेरे सर ना डालो

उसने भी घूंघट सरकाई तो थी ”

फिर शुरू होजाता मुसलसल मिलना-जुलना, दुनिया हसीन लगने लगती, जहां के सारे रंग नज़र आने लगते और चेहरे पे भी अलग-सी रौनक आ जाती है। उसी पर लिखा है कि …

“ जाने क्या जादू करती हैं वो

हम भी परेशान हो जाते हैं

उनसे मिल कर लौटते हैं

तो आईनें तक हैरान हो जाते हैं ”

ये पीक टाइम है, जब सब कुछ अच्छा लगने लगता है। दिन भर की थकान फिर शाम को उसकी बाहों में, उसकी बातों में वो आराम। पर फिर नज़र लग जाती हैं यार। और जब वह पूरा होने का एहसास टूटता हैं ना, तब दर्द होता है। उसी पर कहते हैं कि ...

“ उम्रभर था जिन्हें थामना

अब बस पकड़ रखा है

हाथ तो छूटे थे बराबर

पर दिल अब भी उसके घर रखा है

धूप ही धूप है अब सफ़र में मेरे

ये उसके गोद में किसने सर रखा है

और मेरी जान छूटतें नहीं निशान तेरे हाथों के

मेरे बाद उन हाथों को किसने पकड़ रखा है ”

फिर होता यों हैं कि या तो दिल किसी काम में नहीं लगता या दिल फिर से दिल लगाने में नहीं लगता। बात भी सही हैं कि एक कहानी जो अधूरी छूटी गई, साथ अपने कितने ख़्वाबों को समेट गई, अब नयी कहानी की सोचे भी तो कैसे। इसी पर लिखा हैं कि ...

“ ये जो दास्तानें अधूरी रह जा रही हैं

फिर भी क्यों लिखी जा रही हैं

लिख दूँ मैं तुम्हारा नाम भी लेकिन

उसकी मिटायी क्यों नहीं जा रही हैं ”

आख़िर में दुनिया के मनगढ़ंत, झोल इश्क़-मोहब्बत से मार खाने के बाद इंसान को अपनी पहली मोहब्बत की याद आती है, माँ की याद आती है। वो जो किसी भी सूरत-ए-हाल में आपका ख़याल करना कम नहीं करती। जिसके प्यार को किसी से लड़ना झगड़ना नही होता, ख़ुदको साबित करना नहीं होता। शुद्ध सम्पूर्ण प्यार होता है ये। तो आखिर में उस माँ पर कुछ लिखा हैं कि...

“ सपने थें, उम्मीदें थी

भारी था बस्ता मेरा

बंजर से उस सफ़र में

बस एक फूल था

मेरी माँ का चेहरा

जिसमे सिमटी दुनिया मेरी

और जहाँ ख़त्म हुआ

मोहब्बत का सफ़र सुनहरा ”